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Mahatma Gandhi Biography In Hindi -महात्मा गाँधी जीवन परिचय

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MAHATMA GANDHI BIOGRAPHY IN HINDI – महात्मा गाँधी जीवन परिचय

महात्मा गाँधी जो सदी के महान लोगों में सबसे अधिक महान और  विख्यात हुए उन्होंने भारत के आज़ादी के लिए अपने जीवन को भी समर्पित कर दिया और भारत वासी अच्छे से रह सके इसके लिए उन्होंने कई सारे महान कार्य भी किये आज हम उन्हीं के बारे में पढ़ेंगे Mahatma Gandhi Biography In Hindi – महात्मा गाँधी जीवन परिचय

प्रारंभिक जीवन (Early life) 

हमारे राष्ट्रपिता  महात्मा गाँधी का जन्म  2 अक्टूबर  1869  को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर   हुआ था। उनका पूरा  नाम मोहन दास करमचंद गाँधी था उनके पिता का नाम मोहनदास था और माता का नाम पुतलीबाई था । उनके पिता सनातन धर्म के पंसारी जाति से संबंध रखते थे और ब्रिटिश राज्य के समय काठियावाड़ के छोटे से रियासत के मंत्री व प्रधान थे। माता पिता के देख रेख और संस्कारो के कारण महात्मा गाँधी में वे विचार पहले से ही विकसित हो गये थे जिन्होंने ने उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

गाँधी जी जब साढ़े 13 वर्ष के थे तब ही उनके माता पिता ने उनकी शादी करा दिया था उनकी पत्नी का नाम कस्तूरबा गाँधी था। 1885 में जब गाँधी जी 15 वर्ष के थे तब उनकी पहले संतान ने जन्म लिया था लेकिन किसी कारण से उसकी मृत्यु हो गयी थी। गाँधी जी के पिता मोहनदास करमचंद का भी देहांत 1885 में हो गया था। गाँधी जी के चार पुत्र थे हरीलाल गाँधी उनके सबसे बड़े पुत्र थे जिनका जन्म 1888 में हुआ था इसके बाद भी गाँधी जी के तीन पुत्र थे जिनका नाम मणिलाल गाँधी , देवदास गाँधी और रामदास गाँधी था।

पोरबंदर से गाँधी जी ने मिडिल और राजकोट से हाई स्कूल पास किया गाँधी जी पढ़ाई में समान बच्चों के जैसे ही थे मैट्रिक के बाद की परीक्षा उन्होंने भावनगर के शामलदास कॉलेज से पास किया था और गाँधी जी पढ़ाई से ज्यादा खुश नहीं रहते थे क्योंकि उनका पुरा परिवार उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहते थे।

विदेश में शिक्षा और वकालत (Education)  

गाँधी जी अपने 19 वे  जन्म दिन के 1 महीना पहले ही वैरिस्टर की पढाई करने के लिए लंदन चले गए थे। लंदन जाते समय उन्होंने ने उनकी माता को वचन दिया था की वे लन्दन में किसी भी प्रकार के मांस ,शराब और बुरे संगत को नहीं पकड़ेंगे। हालांकि गाँधी जी ने वह के रीति रिवाज़ो को भी खूब समझा और उन्हें जिया भी लेकिन कभी भी अपने माँ से किये गए वचन को नहीं तोडा।

इसलिए गाँधी जी ने वेजीटेरियन सोसाइटी की सदस्या भी प्राप्त कर लिया था वहां वे शाकाहारी भोजन किया करते थे और वँहा गाँधी जी जिन लोंगो से मिले उन लोगों में थिओसोफिकल सोसाइटी के लोग भी थे जिन्होंने  ने गाँधी जी को भगवत गीता पढ़ने के लिए कहाँ था । इस सोसाइटी की स्थापना 1875 में विश्व बंधुत्व को प्रबल बनाने के लिए की गयी थी और इसे बौद्ध धर्म तथा सनातन धर्म के साहित्य के अध्यन के लिए समर्पित किया गया था।

हिन्दू , ईसाई ,बौद्ध ,ईस्लाम और अन्य धर्मो में पढ़ने से पहले गाँधी जी ने धरम में कोई रूचि नहीं दिखयी। इग्लैंड और वेल्स बार एसोसिएशन में वापस बुलावे पर गाँधी जी भारत लौट आये किन्तु बम्बई में वकालत करके उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। फिर गाँधी  जी ने एक स्कूल में पढ़ाने के लिए शिक्षक के रूप में आवेदन किया पर उसे भी स्कूल वाले की तरफ से नाकार दिया गया।

जिसके बाद गाँधी जी जरूरतमंदो  के  लिए मुकदमे लिखने का काम करने लगे परन्तु एक अंग्रेज अधिकारी के मूर्खता के कारण उन्हें यह कारोबार भी छोड़ना पड़ा। जिस  कारण गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका के नेटाल में जो उन दिनों ब्रिटिस साम्रज्य  का भाग होता था वहां पैर गाँधी जी ने एक वर्ष के लिए वकालत का कारोबार सवीकार कर लिया।

गाँधी जी द्वारा किए गए आंदोलन

नागरिक अधिकारों के आंदोलन (Civil rights movement in South Africa) 

Mahatma Gandhi In South Afric

जब गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका पहुंचे तो उन्होंने ने देखा की भारतीयों की हालत बहुत ख़राब है और वंहा के लोग भारत के लोगों से भेदभाव करते थे वहाँ के लोग भारतीयों को अपने देश में सिर्फ नौकर के काम के लिए रखते थे और उनके साथ नौकरो से भी गिरा हुआ व्यवहार करते थे। जिस का सामना गाँधी जी को भी करना पड़ा। जब गाँधी जी ने प्रथम क्लास की ट्रेन का टिकट लिया था पर उन्हें उसमे नहीं बैठने दिया गया और धक्के मार कर निकल दिया गया था। इतना ही नहीं जब गाँधी जी  कैसे भी करके थर्ड क्लास में गए तो वंहा उन्हें पायदान पर जगह मिला और जिसके कारण यूरोपियन यात्रियों के अंदर आने जाने से उन्हें एक व्यक्ति से मार भी झेलना  पड़ा था। उन्होंने अपनी इस यात्रा में कई सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा।

अफ्रीका में कई होटेलो  में से भी गाँधी जी को वर्जित कर दिया गया था और एक बार कोर्ट में जज ने उन्हें अपनी पगड़ी उतारने का आदेश भी दिया था लेकिन गाँधी जी ने उसे नहीं माना।  इस सब घटनाओ के कारण गाँधी जी के जीवन में एक नया मोड़ आया जिस के कारण गाँधी जी द्वारा किये गए अन्याय के प्रति जागरूकता को सक्रिय गति मिली और गाँधी जी ने भारतीयों पे हो रहे अत्याचार एवं भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाया और लोगो को प्रश्नों के घेरे में खड़ा कर दिया यही से गाँधी जी के जीवन की असल  सुरुवात भी हुई।

अफ्रीका में जितने भी दुर्व्यव्हार भारतीयों के खिलाफ  हो रहे थे उन सब को ख़त्म करने के लिए गाँधी जी ने सगठन भी बनाया और भारतीयों पे हो रहे आत्याचारों के खिलाफ बहुत जमकर विरोध किया जिसका परिणाम हुआ की गाँधी जी पुरे अफ्रीका और भारत में भी लोगों के बीच चर्चित हो गए और उन्हें सब लोग जानने लगे अब लोग गाँधी जी के कहे को करते थे गाँधी जी ने अफ्रीका में भारतीयों को उनका हक़ दिलया और लोगों को उनके स्वयं के लड़ने के लिये जागरूक किया।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम संघर्ष (Indian Independence Struggle)

गाँधी जी वर्ष 1915 में दक्षिण अफ्रीका से वापस भारत में रहने के लिए आ गए उन्होंने भारतीय कांग्रेस अधिवेशनो में अपने विचार को व्यक्त किया। गाँधी जी नेता गोपाल कृष्ण गोखले से काफी प्रभावित थे उनके ही कहने पर गाँधी जी भारत भी वापस आये थे। गाँधी जी ने सुरुवाती दिनों में पुरे भारत में भ्र्मण किया और लोगो के समस्याओ को समझा।

चंपारण और खेड़ा सत्याग्रह (Champaran Agitations)

चंपारण का किसान आंदोलन अप्रैल 1917 में हुआ था गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह और अहिंसा के अपने तरीके को भारत में प्रयोग किया गाँधी जी को पहली बड़ी उपलब्धि 1918 में चंपारण और खेड़ा सत्याग्रह में मिला। पर इससे इतना कोई फरक नहीं पड़ा किसानो को नाम मात्र भत्ता दिया गया जिससे वे और गरीबी से घिर गए अंग्रेजो हर इलाके को गंदगी और शराब जैसे कई बुरे चीजों से प्रदूषित कर रहे थे। यह स्थिति निराशाजनक थी और गुजरात के खेड़ा जिले का भी यही हाल था।

गाँधी जी ने वँहा एक आश्रम बनाया जँहा उन्होंने ने बहुत सारे समर्थको और कार्यकर्ता को संगठित किया उन्होंने गाँव के लोगों के तकलीफ को समझा और उनका विस्तृत अध्ययन किया जिससे वँहा के लोगों पर हो रहे अत्याचार के बारे में गाँधी जी को मालूम पड़ा। लोगों के समस्या को दूर करने के लिए गाँधी जी ने कार्य करना चालू किया उन्होंने सबसे पहले स्कूल की सफाई और अस्पतालों का निर्माण किया और अनेक प्रकार के कार्य जनता के भलाई के लिए किया।

लेकिन इसका प्रमुख प्रभाव तब पड़ा जब पुलिस ने गाँधी जी को गिरफ्तार कर लिया और जेल में बंद कर दिया एवं गाँधी जी को राज्य छोड़ने का आदेश दिया गया। जिसके कारण हज़ारो लोगो ने पुलिस के खिलाफ आंदोलन किया कोर्ट , के सामने रैलिया निकली और बिना किसी शर्त के गाँधी जी को रिहा करने का मांग किया। गाँधी जी जेल से निकलने के बाद जमीदारों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और हड़ताल भी किया जो अंग्रेजो के कहने से गरीब किसानों पर हो रहे अत्याचार और खेती पर नियंत्रण ,राजस्व में बढ़ोतरी जैसे अनेक नियमों को रद कराया।इस संघर्ष के दौरान ही जनता ने गाँधी जी को बापू , पिता एवं महात्मा जैसे नामों से संबोधित किया इतना सब होने के बाद गाँधी जी की ख्याति पुरे देश में फ़ैल गयी।

असहयोग आंदोलन (Non Cooperation Movement)

अंग्रेजों के बढ़ते कार्यों को रोकने के लिए गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन को सुरु किया था 1 ऑगस्ट 1920 को असहयोग आंदोलन लागू किया गया था पंजाब में अंग्रेज सरकार द्वारा जलियावाला बाग हत्याकांड जिसे अमृतसर नरसंहार के नाम से भी जाना जाता है जिसने देश को भरी आघात पहुंचाया था जिसके कारण लोगो में हिंसा और क्रोध की ज्वाला को भड़का दिया था। जिस के कारण स्टूडेंटों ने स्कूल तथा कॉलेज जाना छोड़ दिया वकीलो ने कोर्ट जाना बंद कर दिया और कामगार हड़ताल पर चले गए थे।

असहयोग आंदोलन का असर सब जगह दिखयी देने लगा था और ब्रिटिश सरकार की नींव हिल गई थी। फरवरी 1922 में किसानों के समूह ने गोरखपुर के चौरी -चौरा पुरवा में एक पुलिस स्टेशन पर हमला करके आग लगा दिया था। हिंसा की इस घटना के बाद गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन को तत्काल वापस ले लिया था। गाँधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया था 10 मार्च 1922 को राजद्रोह के लिए गाँधी जी पर मुकदमा चलाया गया।जिसमे उन्हें 6 साल कैद की सजा सुनाकर जेल भेज दिया गया। गाँधी जी ने दो साल ही जेल में रहे उसके बाद उन्हें फ़रवरी 1924 में उनके आंत (liver) में तकलीफ को लेकर उन्हें ऑपरेशन के लिए रिहा कर दिया गया था।

राजस्व और नमक सत्याग्रह आंदोलन (Revenue and Salt Satyagraha Movement)

Salt Satyagraha

1924  में जेल से छूटने के बाद गाँधी कुछ दिनों के लिए राजनीति से दूर ही रहे और देश के विकास को बेहतर करने के लिए वे शराब, अज्ञानता, गरीबी को दुर करने के लिए कई सारे आंदोलन करते रहे। साथ ही साथ स्वराज पार्टी और कांग्रेस के बीच के खाई को भरने में लगे थे।

फिर गाँधी जी ने 1928 में सर जॉन साइमन के नेतृत्व में एक नया संवैधानिक आयोग बनाया जिस में कोई भी भारतीय नहीं था और जिस के कारण भारतीय राजनीतिक दाल उसका बहिष्कार करने लगे थे। 1928 में कलकत्ता में हुये कांग्रेस के अधिवेशन में गाँधी जी ने एक प्रस्ताव रखा जिसमें भारतीय सम्राज्य को सत्ता प्रदान करने के लिया कहा गया था और अगर अंग्रेज ऐसे नहीं करते है तो फिर से संपूर्ण देश में असहयोग आंदोलन का सामना करने के लिए तैयार रहे।

गाँधी जी ने युवा वर्ग के लोग सुभाष चंद्र बोस तथा पंडित जवाहरलाल जैसे पुरुषो से तुरंत आजादी के विचारों को लेकर बात करने लगे और अंग्रेजों से उन्होंने बात किया पर उसका कोई जवाब अंग्रेजों ने नहीं दिया।  जिनके कारण 31 दिसम्बर 1929 को लाहौर में भारत का झंडा पहराया गया था। 26 जनवरी 1930 का दिन लाहौर में भारतीय स्वतंत्रता दिवस के रूप में इंडियन नेशनल कांग्रेस ने मनाया।

इसके बाद मार्च में गाँधी जी ने नमक पर लगे कर को हटाने के लिए चलाया जिसमें 12 मार्च से लेकर 5  अप्रैल तक चला था और  इसे ही नमक आंदोलन व दांडी यात्रा  के नाम से जाना जाता है। इस आंदोलन में गाँधी जी और उनके साथ के लोग अहमदाबाद से गुजरात  तक 400 किलो मीटर का सफर पैदल ही तय किया था। इस आंदोलन में हज़ारों की संख्या में भारतीयों ने भाग लिया था भारत में अंग्रेजो के पकड़ को कम करने में यह भी बहुत सफल आंदोलन था।

इसके बाद लार्ड एडवर्ड इरविन के सरकार ने गाँधी जी के साथ विचार विमर्श किया और गाँधी जी और इरविन के इस संधि को इरविन गाँधी की संधि  के नाम से जाना जाता है।  सविनय अवज्ञा आंदोलन को बंद करने के लिए अग्रेंज सरकार ने सारे राजनैतिक कैदियों को रिहा करने के लिए रजामंदी दे दिया था।  इस सफल आंदोलन के कारण महात्मा गाँधी जी को लन्दन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में भारतीय कांग्रेस के तरफ से भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया।

लेकिन यह सम्मेलन गाँधी जी और सारे भारतीयों के लिये बहुत निराशाजनक था क्यों अंग्रेजो ने फिर से लोगों पर अपने हुकूमत आरम्भ कर दिया था। गाँधी जी को गिरफ्तार करके फिर से जेल भेज दिया गया था और उनके समर्थकों को उनसे दुर रखने के बहुत उपाय किया गया था लेकिन यह योजना सफल नहीं हुआ।

Dalit movement and anti-discrimination (दलित आंदोलन और भेदभाव विरोध)

1932 में दलित आंदोलन भी जोर पकड़ रहा था दलित नेता और विद्यवान डॉक्टर बाबा साहेब आंबेडकर लोगों को उनका हक़ दिलाने और भेदभाव को खत्म करने के लिए काम कर रहे थे। गाँधी जी भी जाति पात और छुआछूत के खिलाफ थे जिसके कारण उन्होंने 6 दिन का अनसन ले लिया और बिना कुछ खाये पीये 6 दिनों तक आंदोलन करते रहे।

अछूतो के जीवन को सुधारने के लिए गाँधी जी द्वारा चलाए  गए इस अभियान की सुरुवात थी गाँधी जी ने अछूतो को हरिजन का नाम दिया था जिसे वे भगवान की संतान मानते थे 8 मई 1933 को हरिजन आंदोलन में मदत करने के लिए गाँधी जी  ने आत्म शुद्धिकरण का 21 दिन तक चलने वाला उपवास किया। पर गाँधी जी का यह अभियान दलितों को पसंद नहीं आया था और गाँधी जी एक नेता ही बने रहे।

बाबा साहेब आंबेडकर ने भी गाँधी जी द्वारा हरिजन शब्द का उपयोग करने के लिए स्पष्ट निंदा की , कि दलित लोग कमजोर और अपरिपक़्व है जिसके कारण ऊंचे जाति के लोग उन्हें कुछ भी कहते है और उनका समान नहीं करते। भारतीय स्वन्त्रता संग्राम के दिनों में सामजिक बुराइयों में छुआछूत एक प्रमुख बुराई थी जिसके विरोध में महात्मा गाँधी और उनके अनुयायी संघर्ष करते रहे। उस समय देश के प्रमुख मंदिरो में हरिजनों को  प्रवेश करने की आज्ञा नहीं थी ।

द्वितीय विश्व युद्ध और भारत छोड़ो आंदोलन (Second world war Quit India Movement)

Mahatma Gandhi At Quit India Movement

जब द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ने लगा तब गाँधी जी ने अहिंसात्मक नैतिक सहयोग देने का पछ लिया किन्तु कांग्रेस के दूसरे नेता इस विचार के खिलाफ थे जिसके कारण कांग्रेस के सभी नेताओं ने अपने पद दे त्यागपत्र दे दिया था। और अंग्रेज भी भारत को आज़ाद करने के खिलाफ थे लेकिन समय के साथ गाँधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन को अधिक तीव्र कर दिया। अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए सारे तौर तरीके अपनाने लगे।

भारत छोड़ो आंदोलन इस संघर्ष का शक्तिशाली आंदोलन बन गया जिसके कारण बहुत हिंसा और गिरफ्तारी भी हुई। पुलिस के गोलियों से हज़ारो स्वतंत्रता सेनानी मारे गए या तो घायल हो गए और हज़ारों गिरफ्तार कर लिए गए। गाँधी जी और उनके अनुयायी ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वे युद्ध का समर्थन तब तक नहीं करेंगे जब तक भारत को तत्काल आज़ादी  नहीं दे दी जाती। गाँधी जी ने सभी भारतीयों और कांग्रेस के नेताओं को अहिंसा पूर्वक करो या मारो के द्वारा अंतिम स्वतंत्रता के लिए अनुशासन बनाये रखने को कहा।

गाँधी जी और उनके  समर्थकों  को मुंबई में अंग्रेजो द्वारा 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया गया। गाँधी जी  को पुणे के आंगा खां  महल में दो साल तक बंदी बना कर रखा गया।  यही वह समय था जब गाँधी जी को उनके निजी  जीवन में दो गहरे आघात लगे। गाँधी जी का 50 साल पुराना सचिव महादेव देसाई 6 दिन बाद ही दिल का दौरा पड़ने से मर गए और गाँधी जी के पत्नी कस्तूरबा गाँधी का भी देहांत हो गया।

इसके 6 महीने बाद गाँधी जी को भी मलेरिया का शिकार होना पड़ा उनके ख़राब स्वास्थ और उनके उपचार के लिए उन्हें 6 मई 1944 को रिहा कर दिया गया।  अंग्रेज उन्हें जेल में दम तोड़ने नहीं देना चाहते थे क्योंकि उन्हें पता था की अगर गाँधी जी को कुछ हो गया तो जनता को संभलना मुश्किल हो जएगा। हालांकि भारत छोड़ो आंदोलन को अधिक सफलता तो नहीं मिला पर इस आंदोलन ने लोगों को एक साथ खड़ा कर दिया था। जिसके कारण अंग्रेजों ने युद्ध समाप्त होने के बाद सत्ता को भारतीयों के हाथ में सौप ने का वादा किया।  जिसके कारण गाँधी जी और उनके अनुयायी द्वारा आंदोलन को बंद कर दिया गया जिससे अंग्रेजो ने कांग्रेसी नेताओं सहित 100,000 राजनैतिक बंदियो को रिहा कर दिया गया।

भारत का विभाजन और स्वतंत्रता (Partition and Independence of India)

Mahatma Gandhi India Partition

गाँधी जी ने 1946 में कांग्रेस को ब्रिटिश के कैबिनेट मिशन  को  ठुकराने का प्रस्ताव दिया क्यों की अंग्रेज मुस्लिमों के बहुलता वाला अलग देश  करना चाहते थे लेकिन गाँधी जी को यह मंजूर नहीं था गाँधी जी देश को दो भागों में बटने नहीं देना चाहते थे। गाँधी जी किसी भी ऐसी योजना के खिलाफ थे , जो भारत को दो भागो में विभाजित कर दे। भारत के बहुत से मुस्लिमों , सिखों और हिन्दुओं को हिंसा के चलते मौत के घाट उतार दिया गया था। देश के अधिक लोगों का मत देश के बटवारे के पक्ष में था और मुहमद अली जिन्ना  मुस्लिम लीग के नेता थे देश के बटवारे में उन्होंने ने भी सहयोग का परिचय दिया था।

इतना सब होने के कारण देश में हो रहे हिन्दू और मुस्लिम के लड़ाई को रोकने के लिए कांग्रेस के नेताओं ने भी बटवारे को मंजूरी दे दी थी।  कांग्रेस नेता जानते थे गाँधी जी बटवारे को लेकर कभी भी सहमत नहीं होंगे और भी गाँधी जी के आज्ञा के कांग्रेस नेताओ के लिए भी कोई निर्णय लेना संभव नहीं था क्योकि गाँधी जी ने पार्टी के निर्माण में और पुरे देश में गाँधी जी के मत को मानने वाले लोग अधिक थे गाँधी जी जो कहते वही होता लेकिन सरदार पटेल  ने गाँधी जी को समझने का प्रयास किया की नागरिक अशांति वाले युद्ध को रोकने के लिए यही एक उपाय है  मज़बूरी में गाँधी जी ने भी अपनी अनुमति दे दी।

गाँधी जी से सम्बंधित अनेक जानकारी

महात्मा गाँधी की मृत्यु (Mahatma Gandhi Death)

Mahatma Gandhi Death

30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने गोली मार कर गाँधी जी की हत्या कर दिया था जब गाँधी जी दिल्ली के बिड़ला भवन में चहलकदमी कर रहे थे गाँधी जी को गोली मरने वाले नाथूराम गोडसे हिन्दू राष्टवादी थे  उनका कटरपंथी हिन्दू महासभा के साथ संबंध था ।  जिसने गाँधी जी को पाकिस्तान को भुकतान करने के मुद्दे को लेकर भारत को कमजोर बनाने के लिए जिम्मेदार ठहराया था।

गाँधी जी के हत्या के अपराध में नाथूराम गोडसे और उनके साथ के लोगों को केस चला कर उन्हें सजा दी गई तथा 15 नवंबर 1949 को इन्हे फांसी दे दी गई। राजघाट नई दिल्ली में गाँधी जी के स्मारक पर देवनागरी में ‘ हे राम ‘ लिखा हुआ है।  ऐसा माना जाता है की जब गाँधी जी को गोली लगी तो उनके मुख से निकलने वाला अंतिम शब्द हे राम था। गाँधी जी की  राख को एक अस्थि कलश में रख दिया गया और उनके सेवाओं को याद दिलाने के लिए सम्पूर्ण भारत में ले जाया गया। इनमे से कुछ हिस्सा इलहाबाद में विसर्जित कर दिया गया था  और अधिकांश भाग को पवित्र रूप में रख दिया गया था।

गाँधी के सिद्धांत (Gandhi’s Principles)

गाँधी जी ने अपना पूरा जीवन सत्य और सच्चाई की खोज में लगा दिया। उन्होंने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए स्वयं के गलतियों को सुधारने और उन्हें ना दोहराने के लिए कोशिस किया। गाँधी जी ने उनके द्वारा लिखी गई उनके आत्म कथा को ” सत्य का प्रयोग ” नाम दिया है।

गाँधी जी का कहना था कि किसी भी लड़ाई में विजय प्राप्त करने के लिए सबसे पहले हमें अपने दुष्टात्माओं , भय और असुरक्षा जैसे तत्वों पर विजय पाना चाहिए। गाँधी जे का मानना था की भगवान ही सत्य है। लेकिन बाद में उन्होंने अपने इस कथन को ” सत्य ही भगवान हैं ” में बदल दिया था।

गाँधी जी अहिंसा के पुजारी थे देश को आजाद करने में गाँधी जी का सबसे बड़ा हथियार अहिंसा ही था। गाँधी जी ने अपने आत्मकथा ” द स्टोरी ऑफ़ माय एक्सपेरिमेंट विथ ट्रुथ ( The Story of My Experiments with Truth ) ” में दर्शन और अपने जीवन के मार्ग का वर्णन किया है

गाँधी जी का मानना था की अगर कोई व्यक्ति समाज सेवा में कार्यरत है तो उसे साधरण जीवन के ओर ही बढ़ना चाहिए। गाँधी जी के सादगी और साधरण स्वभाव के कारण ही गाँधी जे सब के प्रिय थे। गाँधी जी हप्ते में एक दिन मौन धारण करते थे उनका मानना था की बोलने के परहेज से आंतरिक मन को शांति मिलती है।

गाँधी जी का जन्म हिन्दू परिवार में हुआ, उनके पुरे जीवन में अधिकतर सिद्धन्तो की उत्पति हिंदुत्व से हुआ था साधारण हिन्दू के तरह वे सारे धर्मो को सामन रूप से मानते थे इसलिए उन्होंने धर्म परिवर्तन के सारे तर्को एवं प्रयासों को अस्वीकृत किया। वे ब्रम्ह ज्ञान के जानकार थे और सभी प्रमुख धर्मो को विस्तार से पढ़ते थे।

गाँधी जी के पुस्तकें (Mahatma Gandhi Books)

गाँधी जी का जन्म हिन्दू परिवार में हुआ , उनके पुरे जीवन में अधिकतर सिद्धन्तो की उत्पति हिंदुत्व से हुआ था साधारण हिन्दू के तरह वे सारे धर्मो को सामन रूप से मानते थे इसलिए उन्होंने धर्म परिवर्तन के सारे तर्को एवं प्रयासों को अस्वीकृत किया। वे ब्रम्ह ज्ञान के जानकार थे और सभी प्रमुख धर्मो को विस्तार से पढ़ते थे।

गाँधी जी के प्रमुख पुस्तके (Gandhiji’s major Books)

वैसे तो गाँधी जी ने बहुत सारे पुस्तके लिखी है पर उनके द्वारा कुछ प्रमुख पुस्तकें भी है हिंद स्वराज , दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास , सत्य के प्रयोग (आत्मकथा ) तथा गीता पदार्थ कोश सहित संपूर्ण गीता के टीका। गाँधी जी अपनी किताबें गुजराती में ही लिखते थे पर उनका अनुवाद हिंदी व अंग्रेजी में भी करवाते थे।

गाँधी जी ने यह पुस्तक इग्लैंड से लौटते समय जब वे जहाज में थे तब लिखा था और जब वे दक्षिण अफ्रीका पहुंचे तब इंडियन ओपिनियन प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया था।

गाँधी जी ये पुस्तक जब वह मुंबई के येरवडा जेल में थे तब लिखना सुरु किया था 5 फरवरी 1924 को रिहा होने से पहले ही गाँधी जी ने इस पुस्तक के 30 अध्याय लिख डाले थे . बाद में यह इतिहास लेखमाला के नाम ने जवजीवन में प्रकाशित हुआ।

यह पुस्तक गाँधी जी ने अपने जीवन और उनके साथ हुये सत्य घटनाओं पे लिखा था यह गाँधी जी द्वारा लिखी गई उनकी आत्मकथा है। गाँधी जी के इस पुस्तक का प्रकाशन 25 नवंबर 1925 को “प्रस्तावना” के प्रकाशन से सुरु हुआ था। गाँधी जी द्वारा लिखित पुस्तकों में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा पढ़ी जाने वाली यही पुस्तक है।

महात्मा गाँधी अनमोल विचार

हिंसक प्रतिरोध की अस्वीकृत

जो लोग हिंसा के जरिये आज़ादी हासिल करना चाहते थे गाँधी जी ने उनकी भी आलोचना की थी जिसके कारण गाँधी जी राजनैतिक आग के लपेट में आ गए थे। राजगुरु  भक्त सिंह ,सुखदेव , उधम सिंह  फांसी के खिलाफ इनकार कर देना कुछ दलों में निंदा का कारण बना था।

इस  आलोचना के लिए गाँधी जी ने कहा था ” कि एक समय था जब लोग मुझे सुना करते थे कि किस तरह अंग्रेजो से बिना हथियार लड़ा जा सकता है क्योंकि तब हथियार नहीं थे।  किन्तु आज मुझे कहा जाता है की मेरी अहिंसा किसी काम की नहीं क्योंकि इससे हिन्दू मुसलमानों के दंगो को नहीं रोका जा सकता इसलिए आत्मरक्षा के लिए हथियार होने चाहिए।

महात्मा गाँधी से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न हिंदी में

महात्मा गाँधी से कौन से पांच चीजें  हमें सिखना चाहिए

गाँधी जी दवारा  प्राप्त  प्रुस्कार

महात्मा गाँधी को  1937 , 1938 , 1939 और 1947 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामंकित किया गया था। भारत के आज़ादी में गाँधी जी का सबसे महत्वपूर्ण योगदान होने के कारण गाँधी जी इन पुरस्कार के दावेदार भी थे।  गाँधी जी को 1948 में भी नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया था। पर पुरस्कार मिलने से पहले ही नाथूराम गोडसे ने गाँधी जी की हत्या कर दिया था।

गाँधी जी के जीवन की 10 महान उपब्लधिया

अन्य कार्य

सबसे पहले, महात्मा गांधी एक उल्लेखनीय सार्वजनिक व समाजसेवक व्यक्ति थे। सामाजिक और राजनीतिक सुधार में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी। सबसे बढ़कर, वह सामाजिक बुराइयों से समाज को छुटकारा दिलाना चाहते थे । इसलिए, कई उत्पीड़ित लोगों को उनके प्रयासों के कारण बहुत राहत मिली। उनके अच्छे प्रयासों के कारण गांधी गाँधी एक प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय व्यक्ति बन गए। इसके अलावा, वह कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया आउटलेट्स में चर्चा का विषय बन गये ।

महात्मा गांधी ने पर्यावरणीय स्थिरता में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सबसे उल्लेखनीय, उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार उपभोग करना चाहिए। मुख्य प्रश्न जो उन्होंने उठाया था ” एक व्यक्ति को कितना उपभोग करना चाहिए ? “। गांधी जी ने निश्चित रूप से इस सवाल को सामने रखा।

इसके अलावा, गांधी जी द्वारा स्थिरता का यह मॉडल वर्तमान भारत में बहुत प्रासंगिकता रखता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वर्तमान में, भारत में बहुत अधिक आबादी है। नवीकरणीय ऊर्जा और लघु-सिंचाई प्रणालियों को बढ़ावा दिया गया है। यह गांधीजी के अत्यधिक औद्योगिक विकास के अभियानों के कारण था ।

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