आपने टीवी पर अक्सर देखा होगा या अखबार में पढ़ा होगा कि दो देशों के बीच फलां-फलां करार हुआ। या दोनों देशों के अधिकारियों के बीच एमओयू हुआ या उन्होंने एमओयू पर साइन किए। इसका एक सीधा सा मतलब तो यह है कि दो देशों, दो संस्थाओं के बीच या दो पक्षों के बीच समझौते के लिए एमओयू किया जाता है। अगर आपको MOU full form नहीं पता, या आप इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं रखते तो यहां से मदद ले सकते हैं-
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MOU full form in Hindi
MOU की फुल फार्म है – Memorandum of Understanding
MOU in Hindi – मेमोरेंडम आफ अंडरस्टैंडिंग।
MOU meaning
इसे हिंदी में समझौता ज्ञापन भी पुकारा जाता है। इसे अमूमन कंपनियां आपसी आधिकारिक भागीदारी या साझेदारी स्थापित करने के लिए करती हैं। MOU दो या दो अधिक पक्षों में हो सकता है।
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MOU क्या है
MOU एक विधिक दस्तावेज है। इसमें भागीदारी की जरूरी शर्तें लिखी रहती हैं। कुछ गाइड लाइन होती हैं। साथ ही शर्तें के उल्लंघन की स्थिति में उठाए जा सकने वाले कदमों का जिक्र भी किया जाता है। दो या जितने पक्ष इसमें शामिल होते हैं, वह सभी इस दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हैं। इसका मतलब यह है कि इन सभी को समझौते यानी साथ मिलकर कार्य करने की शर्तें स्वीकार हैं।
यानी अगर एक पक्ष इसमे दर्शाई गई शर्तों का उल्लंघन करता है तो दूसरा पक्ष उसके खिलाफ कानून या कोर्ट का सहारा ले सकता है।
MOU के फायदे क्या क्या है?
करीब-करीब सभी देशों में बड़े-बड़े प्रोजेक्ट MOU के सहारे चल रहे हैं। सरकारें किसी प्रोजेक्ट में अगर प्राइवेट पार्टनर की मदद लेती है तो दोनों के बीच MOU होता है। मसलन देश में कई बिजली परियोजनाएं ऐसी हैं, जो सरकार प्राइवेट पार्टनर के साथ मिलकर चला रही है।
ऐसे में दोनों के बीच कार्य, कर्मचारी, राजस्व यानी रिवेन्यू के बंटवारे की हदें इन सबका जिक्र MOU में रहता है। इस पर हस्ताक्षर इस बात का सुबूत होते हैं कि यह शर्तें सरकार और प्राइवेट पार्टनर दोनों को ही मान्य हैं।
पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप यानी पीपीपी मोड पर कई परियोजनाएं चल रही हैं। यह सब MOU के ही जरिये हो रहा है। कई बार यह भी होता है कि प्राइवेट पार्टनर के शर्त ताक पर रखने पर सरकार उसका करार खत्म कर देती है या उस पार्टनर के खिलाफ विधिक यानी कानूनी कार्रवाई का सहारा लेती है।
MOU की खास बात
MOU करने का एक मुख्य मकसद यह है कि दो पक्ष एक-दूसरे की खासियतों यानी विशेषज्ञताओं का लाभ लेती हैं। मसलन सरकार के पास मैन पावर है और बजट नहीं है तो ऐसे में वह किसी अमीर पार्टनर का सहारा लेकर अपनी मैन पावर के जरिये किसी प्रोजेक्ट को अंजाम तक पहुंचाने का कदम उठाती है।
ऐसे में सरकार को उस प्रोजेक्ट को पूरा करने में कामयाबी हासिल होती है तो प्राइवेट पार्टनर को इस प्रोजेक्ट में किसी-न-किसी रूप में हिस्सेदारी। दोनों पक्षों के लाभ के साथ पब्लिक भी इस तरह के प्रोजेक्टों से लाभान्वित होती है।