इस आर्टिकल में हम जानेंगे डाटा लिंक लेयर क्या है,data link layer in hindi और नेटवर्क में इसकी क्या भूमिका है।
यह (OSI) ओपन सिस्टम्स इंटरकनेक्शन मॉडल की सात लेयर्स में से दूसरी लेयर है। सात लेयर्स का यह पूरा मॉडल किसी भी कंप्यूटर नेटवर्क के ऑपरेशन को दर्शाता है।
और यदि इन सातों लेयर्स को हम एक-एक कर खोलकर समझते हैं,तो निश्चित ही हमारे लिए इस पुरे मॉडल को समझना काफी आसान हो जाएगा,तो इस आर्टिकल में हम डाटा लिंक लेयर को समझेंगे।
Contents
Data link layer in Hindi
डाटा लिंक लेयर की जिम्मेदारी है की नेटवर्क में एक नोड से दूसरे तक मैसेज की सही रूप से डिलीवरी हो सके,यानि इसका मुख्य कार्य फिजिकल लेयर के भीतर बिना किसी एरर के डाटा का node to node ट्रांसमिशन सुनिश्चित करना है।
डाटा लिंक लेयर में ट्रांसमिशन से पहले डाटा बिट्स को एनकोड,डिकोड व संगठित किया जाता है,ताकि उन्हें फ्रेम्स के रूप में नोड्स के बीच ट्रांसपोर्ट किया जा सके।
जैसे ही नेटवर्क में कोई पैकेट आता है,तो ऐसे में उस पैकेट को उसके गंतव्य यानि नोड तक पहुँचाने की जिम्मेदारी डाटा लिंक लेयर की ही होती है,जिसका पता वह उस नोड के मैक एड्रेस से लगा लेता है।
इसके साथ ही डाटा फ्लो में आने वाली एरर को चेक करने और डाटा के फ्लो को बनाए रखने के लिए यह टाइमर और सीक्वेंस नंबर्स का उपयोग करता है,यानि डाटा सही अनुक्रम और समय पर रिसीविंग नोड तक पहुँचता रहे।
डाटा पैकेट्स की डिलीवरी के समय डाटा लिंक लेयर फ्लो कंट्रोल पर भी नजर बनाए रखता है,जिसमे हर स्तर पर पैकेट रिसीविंग नोड की हैंडलिंग क्षमता का ध्यान रखा जाता है,और उसी अनुसार डाटा लिंक लेयर द्वारा डाटा के फ्लो को Maintain किया जाता है।
डाटा लिंक लेयर के मुख्य कार्य।
नेटवर्क होस्ट यानि सेंडिंग और रिसीविंग स्टेशंस के बीच सही रूप से डाटा के कम्युनिकेशन के लिए डाटा लिंक लेयर के निम्नलिखित Functions कार्य करते हैं।
फ्रेमिंग:- जब डाटा लिंक लेयर द्वारा नेटवर्क लेयर से stream of bits को प्राप्त किया जाता है,और उन्हें प्रबंधनीय डाटा यूनिट्स में बाँट दिया जाता है,यानि जिन्हे आसानी से मैनेज किया जा सके तो वह Frames कहलाते हैं। तो सोर्स मशीन द्वारा डाटा को रिसीविंग होस्ट तक इन फ्रेम्स के रूप में ही भेजा जाता है।
फिजिकल एड्रेसिंग:- नेटवर्क में रिसीवर नोड की पहचान के लिए डाटा लिंक लेयर द्वारा फ्रेम्स में हैडर जोड़ दिया जाता है,जो की रिसीवर के Mac एड्रेस को दर्शाता है,ताकि किसी भी बड़े नेटवर्क में रिसीविंग नोड की पहचान सुनिश्चित की जा सके।
फ्लो कण्ट्रोल:- इस तंत्र द्वारा डाटा ट्रांसमिशन को कण्ट्रोल किया जाता है,यानि अगर ट्रांसमिशन फ़ास्ट है,और रिसीविंग नोड धीमी गति से रिसीव कर रहा है,तो ऐसे में रिसीविंग नोड की तरफ ट्रैफिक बढ़ जाएगा और ट्रैफिक जाम की समस्या उत्पन्न हो जाएगी,तो ऐसे में फ्लो कण्ट्रोल तंत्र द्वारा गति को समान बनाकर रखा जाता है,ताकि इस प्रकार की समस्या उत्पन्न न हो पाए।
एरर कण्ट्रोल:- डाटा लिंक लेयर में इस प्रक्रिया के द्वारा डाटा फ्रेम्स की Errors का पता लगाया जाता है और पता लगने पर स्वतः ही उस एरर को ठीक कर लिया जाता है,यानि ट्रांसमिशन के दौरान जिन फ्रेम्स में एरर है या वह ट्रांसमिट नहीं हो पाएं हैं,तो ऐसे फ्रेम्स में आने वाली कमियों का पता लगाना,उन्हें ठीक करना व दोबारा ट्रांसमिट करना शामिल है।
एक्सेस कण्ट्रोल:- जब दो या उस से अधिक डिवाइस एक ब्रॉडकास्ट लिंक से जुड़े हों उदाहरण के तोर पर (bus topology) तो वहाँ पर जब एक ही समय पर उस शेयर्ड लिंक पर कई डिवाइस डाटा ट्रांसमिट करेगी तो ऐसे में Collision के समस्या उत्पन्न हो जाएगी,तो इसी समस्या का समाधान एक्सेस कण्ट्रोल द्वारा किया जाता है।
अंतिम शब्द
दोस्तों उम्मीद है आज के इस लेख से आपको जानकारी मिल गई होगी की आंखिर डाटा लिंक लेयर क्या है,data link layer in hindi और नेटवर्क में इसका क्या कार्य है।