The history of India is full of wars, India has fought many wars in history and the India we describe today and the country in which we are living today or the country of India has fought so many wars, then today India The country is left, we will explain to you today through our calculations, about some major wars in Indian history and why that war was fought, what was the reason behind fighting the war and then what was the result of the war, also about all these things. We will explain to you and it is necessary for all the students whether they are preparing for Union Public Service Commission UPSC IAS or preparing for Banking Railway or any government job, for all those students to understand war and in Indian history. Good marks can be brought in government jobs by understanding the major war.
भारत की इतिहास युद्ध से भरी हुई है भारत देश ने इतिहास में बहुत सारे युद्ध लड़े हैं और जिस भारत की आज हम वर्णन करते हैं और जिस भारत देश में आज हम रह रहे हैं या भारत देश ने ना जाने कितने युद्ध लड़े हैं तब आज भारत देश बचा है हम अपने हिसाब कल के माध्यम से आज आपको समझाएंगे भारतीय इतिहास के कुछ प्रमुख युद्ध के बारे में और वह युद्ध क्यों लड़ी गई युद्ध लड़ने के पीछे का क्या कारण था और फिर युद्ध में क्या रिजल्ट आया इन सभी चीजों के बारे में भी आपको हम समझाएंगे और यह सभी विद्यार्थियों के लिए जरूरी है चाहे वह यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन यूपीएससी आईएएस की तैयारी कर रहे हो या फिर बैंकिंग रेलवे या किसी भी सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हो उन सभी विद्यार्थियों के लिए युद्ध को समझना और भारतीय इतिहास में प्रमुख युद्ध को समझ कर सरकारी नौकरियों में अच्छे नंबर लाए जा सकते हैं
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War of kalinga ( कलिंग का युद्ध ) :-
War of Kalinga 261 BC It took place in AD between the then ruler of the Maurya Empire, Emperor Ashoka and the country of Kalinga. And in this more than 100000 soldiers were killed and many people were injured, this war was very destructive and horrifying. And the heavy destruction in it changed Ashoka’s heart and this war proved to be the last war of Emperor Ashoka’s life . After this war, Emperor Ashoka embraced Buddhism and took an oath not to commit violence for the rest of his life.
कलिंग का युद्ध 261 ई. पू. में मौर्य साम्राज्य के तत्कालीन शासक सम्राट अशोक तथा कलिंग देश के बीच हुआ था। और इसमें 100000 से भी अधिक सैनिक मारे गए थे और बहुत से लोग घायल हुए थे यह युद्ध बहुत ही विध्वंशकारी और भयावह था।और इसमें हुए भारी विनाश ने अशोक का हृदय परिवर्तित कर दिया और यह युद्ध सम्राट अशोक के जीवन का आखिरी युद्ध साबित हुआ। इस युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिए और अपना जीवन पर्यन्त कर हिंसा न करने की शपथ ले ली
Battle of Talikota (1564-65) / तालीकोटा का युद्ध (1564-65) :-
The Battle of Talikota was fought between the united power of Bijapur, Bidar, Ahmednagar and Golconda (also known as the Deccan Sultanate) under the leadership of Hussain Nizamshah and Raja Ram Rai of Vijaynagar. In which the king of Vijayanagar was defeated, as a result of which the last Hindu kingdom of South India, Vijayanagara came to an end, this war is counted among the devastating wars of Indian history. This war is also known as ‘Bannhatti War’. Despite the adverse consequences of the war, the Vijayanagara Empire survived for almost a hundred years. It was here that the fourth Aravidu dynasty was established in Vijayanagara.
तालीकोटा का युद्ध हुसैन निजामशाह के नेतृत्व में बीजापुर, बीदर, अहमदनगर और गोलकुण्डा की संगठित शक्ति (जिसे दक्कन सल्तनत भी कहा जाता है) व विजय नगर के राजा रामराय के मध्य हुआ था। जिसमें विजयनगर के राजा की हार हो गई थी जिसके परिणाम स्वरूप दक्षिण भारत के अंतिम हिंदू साम्राज्य विजयनगर का अंत हो गया इस युद्ध की गणना भारतीय इतिहास के विनाशकारी युद्धों में की जाती है। इस युद्ध को ‘बन्नीहट्टी के युद्ध’ के नाम से भी जाना जाता है। युद्ध के परिणामों के प्रतिकूल रहने पर भी विजयनगर साम्राज्य लगभग सौ वर्ष तक जीवित रहा। यहीं पर विजयनगर में चौथे अरविडु वंश की स्थापना की गई
Battle of Haldighati (1576) / हल्दीघाटी का युद्ध (1576) :-
The tales of valor and valor of Maharana Pratap in the battle of Haldighati are on everyone’s tongue or are the most talked about war in medieval history, in which the king of Mewar, Rana Maharana Pratap and the huge army of Akbar led by Man Singh took place in this war. Maharana Pratap is remembered for the Battle of Haldighati that took place on 18 June 17 February, which was a war between the Mughal ruler Akbar and Maharana Pratap, in this war the Mughal army was led by Raja Mansingh and there was a fierce battle between the Mughals and Rajputs. There was a war, Rajputs were supported by the people of the local Bhil caste, this war was quite destructive, Rana Pratap was defeated in this war and Rana Pratap had to take refuge in the Aravalli hills and he lived in the hills and from there the big Mughals harassed the armies in their camps. He ensured that the Mughal soldiers would never live in peace in Mewar. Three more campaigns were launched by Akbar’s army to drive Pratap out of his bases in the mountains, but they all failed. During the same time, Rana Pratap got financial help from a well-wisher named Bhamashah. The Bhil tribesmen assisted Pratap with their expertise to live in the forests.
हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की वीरता और शौर्य के किस्से हर किसी के जुबान पर होती है या मध्यकालीन इतिहास का सबसे चर्चित युद्ध हैं जिसमें मेवाड़ के राजा राणा महाराणा प्रताप और मानसिंह के नेतृत्व वाली अकबर की विशाल सेना के आमने सामने हुआ था इस युद्ध के लिए महाराणा प्रताप को याद किया जाता है हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 17 फरवरी को हुआ था जो युद्ध मुगल शासक अकबर और महाराणा प्रताप के बीच हुआ था इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व राजा मानसिंह ने किया था और मुगलों और राजपूतों के मध्य भीषण युद्ध था इसमें राजपूतों का साथ स्थानीय भील जाति के लोग ने दिया था यह युद्ध काफी विध्वंशकारी था इस युद्ध में राणा प्रताप की पराजय हुई थी और राणा प्रताप को अरावली की पहाड़ियां में शरण लेनी पड़ी थी और वह पहाड़ियों में रहे और वहाँ से बड़े मुगल सेनाओं को अपने शिविरों में परेशान किया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि मेवाड़ में मुगल सैनिक कभी भी शांति से नहीं रहेंगे। प्रताप को पहाड़ों में उनके ठिकानों से बाहर निकालने के लिए अकबर की सेना द्वारा तीन और अभियान चलाए गए, लेकिन वे सभी विफल रहे। उसी दौरान, राणा प्रताप को भामाशाह नामक एक शुभचिंतक से वित्तीय सहायता मिली। भील आदिवासियों ने जंगलों में रहने के लिए अपनी विशेषज्ञता के साथ प्रताप को सहायता प्रदान की।
Battle of Plassey (1757) / प्लासी का युद्ध (1757) :-
The Battle of Plassey took place on June 23, 1757, between the British and the then Nawab of Bengal, Siraj-ud-daula, at a place called Plassey. In this war the British were led by Robert Clive and the Bengal army was led by Mir Jafar. The Battle of Plassey has a historical significance in Indian history. Due to this war the British were able to establish their rule in India. The success of Plassey and the conquest of Bengal succeeded in later attempts by the British to conquer North India. Plassey greatly increased the power and resources of the British. As a result, the Company did not face any difficulty in defeating Shuja-ud-daula, the Nawab of Awadh and the Mughal Emperor Shah Alam II in the Battle of Buxar. If Plassey’s decision was against the British, then their establishment of power in North India would have been questionable.
प्लासी का युद्ध 23 जून, 1757 ई. को अंग्रेजों और बंगाल के तत्कालीन नवाब सिराजुद्दौला के मध्य प्लासी नामक स्थान पर हुआ था। इस युद्ध में अंग्रेजों की अगुआई रोबर्ट क्लाइव ने तथा बंगाल की सेना की अगुआई मीरजाफर ने की थी।भारतीय इतिहास में प्लासी के युद्ध का ऐतिहासिक महत्त्व है। इस युद्ध के कारण अंग्रेज भारत में अपना शासन स्थापित करने में सफल हो सके। प्लासी की सफलता और बंगाल की विजय ने अंग्रेजों द्वारा कालान्तर में उत्तर भारत की विजय के प्रयासों को सफल बनाया। प्लासी ने अंग्रेजों की शक्ति और साधनों में व्यापक वृद्धि कर दी। इसके फलस्वरूप कम्पनी को अवध के नवाब शुजाउद्दौला और मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय को बक्सर के युद्ध में हराने में कोई कठिनाई नहीं हुई। यदि प्लासी का निर्णय अंग्रेजों के विरुद्ध होता, तो उत्तर भारत में उनकी सत्ता की स्थापना संदिग्ध हो जाती।