Waiver Meaning in Hindi

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Waiver का हिंदी मीनिंग: – अधित्याग, स्वत्व त्याग, त्याग, आदि होता है।

Waiver की हिंदी में परिभाषा और अर्थ, किसी वस्तु के प्रति अपनेपन का भाव छोड़ देना अथवा उस वस्तु के प्रति मोह न रखना ही त्याग करना होता है।

Waiver Definition in Hindi

त्याग वो है जो हम दुसरो की खुसी के लिए करते है चाहे उसमे हमारे खुसी हो या नहीं हो लेकिन दुसरो के खुसी ज्यादा important होती है. दोस्तों आपकी जानकारी के लिए बात दे की आत्म-त्याग का सच्चा मतलब समझे बिना लोग उसके बदले में कई अन्य क्रियाओं (Verbs) का आचरण करके ही Contented हो जाते हैं. यहाँ तक कि कई लोगों ने तो उसका मतलब आत्मघात तक समझ रक्खा है. कितनों का विश्वास है कि बाह्य वस्तुओं-धन, कुटुम्ब, ऐश्वर्य और घर वार को छोड़कर जंगल में जा बैठना ही Suicide है. कितने नाना प्रकार की Torture द्वारा शरीर को कष्ट देकर सुखा डालने को Suicide समझते हैं. कितने लौकिक यश की इच्छा से प्रेरित होकर अपने धन और प्राणों को समाज और देश के नाम पर न्यौछावर कर देने को Suicide मानते हैं. कहाँ तक कहें, दुनिया में जितने उत्तम कार्य हैं वे सब आत्म-त्याग के स्वरूप ही समझते जाते हैं।

जब हम बात करते है आत्म-त्याग की तो आपको पता होना चाहिए की आत्म-त्याग का सच्चा स्वरूप उपर्युक्त सब दृष्टांतों से भिन्न और विलक्षण है आपकी जानकारी के लिए बता दे की आत्म-त्याग स्वार्थ त्याग का दूसरा नाम है और स्वार्थ कोई ऐसी वस्तु नहीं जो हृदय से बाहर फेंकी जा सकें, वह तो मन की एक अवस्था विशेष है जिसको दूसरे रूप में Change की आवश्यकता है. आत्म-त्याग का मतलब आत्मा का नष्ट करना नहीं, परन्तु वासनाओं और Wishes से लिप्त आत्मा का Waiver है. स्वार्थ का ठीक Temporary happiness में फंसकर सदाचरण और विवेक को भूलना है, स्वार्थ हृदय की उस वासनामय और लोभ-पूर्ण अवस्था का नाम है जिसका Waiver किये बिना सत्य का उदय नहीं हो सकता और न शान्ति और सुख का ही हृदय में संचार हो सकता है, केवल वस्तुओं का Waiver ही सच्चा स्वार्थ Waiver नहीं कहला सकता, किन्तु वस्तुओं की इच्छा का Waiver करना ही Actual Waiver है. मनुष्य अपने धन, कुटुम्ब, परिवार और घर को छोड़कर भले ही संन्यासी बन जाय, परन्तु जब तक मानसिक वासनाओं और Wishes का दमन न किया जाय तब तक सारी बाह्य Activities केवल ढोंग मात्र है। सब लोगों को विदित है कि महात्मा बुद्ध संसार को त्यागकर जंगल में भी आ बैठे, परन्तु छः वर्ष तक उनके हृदय में ज्ञान का उदय न हो सका, क्योंकि वे इतने दिन तक अपने मन को वश में न कर सके थे, ज्यों ही उनका हृदय शुद्ध हुआ त्यों ही एक दम उनके ज्ञान नेत्र खुल गये और चराचर जगत उन्हें प्रत्यक्ष हो गया।

Example Sentences of Waiver In Hindi

निर्वासन का एक औपचारिक लिखित बयान

अमरीका के द्वारा लगभग 42 भारतीय उत्पादों पर से सीमा शुल्क हटाने की व्यवस्था 20 अगस्त को लागू हुई।

हाइकोर्ट से रोक लगाए जाने के बावजूद हमारी सरकार ने वर्ष 1993 तक बसी बस्तियों को नियमित करने का फैसल किया गया है।

किसी उत्पाद के लिए विक्रेता द्वारा क्रेता को अस्वीक्रतियाँ बतायी जानी चाहिए।

अधिपत्य किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से लिए गए सभी ऋणों के लिए होगा।

छूट एक व्यक्ति, सरकार या संगठन द्वारा एक अधिकार या दावा छोड़ने या किसी विशेष नियम या कानून को लागू नहीं करने के लिए एक समझौता है।

राजू ने अपना जीवन अच्छा बनाने के लिए सब कुछ त्याग कर दिया।

उसने आपने भाई के इलाज के लिए अपनी सारी जीवन भर की कमाई का त्याग कर दिया।

त्याग कर हर किसी के बस की बात नहीं इसके लिए बहुत सहस की जरुरत पड़ती है।

हम सभी कोई अपनी लाइफ में किसी न किसी चीज़ का त्याग करना ही पड़ता है।

Waiver Meaning Detail In Hindi

जिस आदमी की त्याग की भावना अपनी जाति से आगे नहीं बढ़ती, वह स्वयं स्वार्थी होता है और अपनी जाति को भी स्वार्थी बनाता है।

जिस देश में मान नहीं, जीविका नहीं, बंधु नहीं और विद्या का लाभ भी नहीं है, वहां नहीं रहना चाहिए।

त्याग पीने की दवा है, दान सिर पर लगाने की सौंठ, Waiver में अन्याय के प्रति चिढ़ है, दान में नाम का लिहाज है।

Waiver का अर्थ है त्रिगुणों से प्रभावित मन की वृत्तियों के साथ होने वाले Identification का प्रयत्न पूर्वक Waiver सन्यास का अर्थ है उस अहंकार का ही Waiver जो शुभ अशुभ कर्मों का कर्ता तथा इष्ट Unwelcome आदि फलों का भोक्ता बनता है. जीवन के हर एक क्षणों में अधोगामी निम्न स्तरीय राजसिक और तामसिक वृत्तियों एवम्‌ प्रवृत्तियों का सम्यक्परित्याग ही Waiver कहलाता है तथा इसके द्वारा हमें अपने उपर ही उस Amazing ownership की प्राप्ति होती है, जिससे हम उस भयंकर अहंकार को ही त्यागने में समर्थ हो पाते हैं जो सर्व अनर्थों का मूल है, अपने आत्म स्वरुप के साक्षात्कार में यह परिच्छिन्न अहंकार विनष्टप्राय हो जाता है, इसी में हमारे मानव जीवन की धन्यता एवं पूर्णता है जिसको गीता में बार बार संन्यास(Retirement) शब्द से कहा गया है.

जैसा की हम सभी जानते है, गीता का सम्पूर्ण 14वाँ अध्याय ही Waiver और सन्यास के अर्थ को केन्द्र में रख कर परिभ्रमण कर रहा है. Waiver के बिना संन्यास सम्पूर्ण रुप से अनाकलनीय है, असम्भव है. यदि कोई ऎसा प्रयत्न भी करे तो उसका संन्यास भी मात्र पाखण्ड ही होगा. एक सच्चा संन्यास बनने के लिए आपको बहुत ज्यादा तापसिया करने के जरुरत होती है. काम्य कर्मों का Waiver संन्यास कहलाता है, और सब कर्मों का फल Waiver ही वास्तव में Waiver है. कामना सदैव फल प्राप्ति की ही होती है, अतः कामना प्रेरित कर्मों का Waiver और कर्मफल की आसक्ति का सर्वथा परित्याग ये दोनों समान ही लगते हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं है कि, दोनों का अर्थ कामनाओं का Waiver ही है परन्तु संन्यास एवं Waiver में कुछ अन्तर तो है ही, फिर भी Waiver संन्यास का Without doubt ही अविभाज्य अंग है. Waiver और संन्यास की साधना का सम्बन्ध हमारे समस्त कर्मों से है, इन दोनों शब्दों में से कोई भी यह नहीं कहता है कि हमको कर्म की उपेक्षा करनी चाहिये, बल्कि दोनों का यही आग्रह है कि हम अपने कर्म का पालन करें, प्रत्येक व्यक्ति को कर्म करना ही चाहिये, परन्तु ये कर्म शुद्ध रुप से अहंकार, स्वार्थ व फलासक्ति से रहित होने चाहिये, फलासक्ति(Fallacy) ही कर्म योग की कुशलता में बाधक सिद्ध होती है ।

Waiver साधन है और संन्यास साध्य है, कुछ विचारकों का ऎसा भी मत है कि, समस्त कर्म दोष युक्त होने के कारण त्याज्य हैं, क्यों कि सभी कर्म परिणाम में न्यूनाधिक वासनायें ही उत्पन्न करते हैं जो आत्मा को आच्छादित कर देती है. अतः कर्मों का स्वरुप से ही Waiver करना चाहिये, कुछ विचारक मनीषी यह भी कहते हैं कि, केवल उन्हीं कर्मों का Waiver करना चाहिये, जो केवल स्वार्थ एवं कामनाओं से प्रेरित होते हैं न कि सभी कर्म Waiver के योग्य है . कुछ तत्व चिन्तक मनीषी कहते हैं कि, मनुष्य को काम्य और निषिद्ध कर्मों का Waiver और कर्तव्य कर्मों पालन अवश्य ही करना चाहिये क्यों कि Good works के आचरण से ही मनुष्य का चरित्र निर्माण होता है, मानव को मात्र दोष युक्त कर्मों का ही परित्याग करना है. तथा अपने कर्मों के द्वारा ही परमात्मा की पूजा व ईश्वर की भक्ति करनी है, यही गीता की आध्यात्मिक साधना है. सर्वप्रथम तो अहंकार और स्वार्थ का Waiver करते हुए, ईश्वरार्पण की भावना से समस्त कर्तव्य कर्मों को करते हुए अन्तः करण को शुद्ध करना, इस प्रकार अन्तःकरण के परिशुद्ध हो जाने पर आत्म-स्वरुप का मनन करना, तत्पश्चात आत्मा के निदिध्यासन के द्वारा आत्म-साक्षात्कार करके उसी सत्स्वरुप में परिनिष्ठित हो जाना, शुद्ध आत्मा में कुछ बनने की प्रकृया नहीं होती, मन की समस्त वासनाओं से वह सदा ही असंस्पृष्ट रहता है।