Write a Brief History of Trade Union Movement in India ?

Trade union movement, which we also know by the name of trade union, trade union is an organization formed voluntarily by the workers, which works for the workers and the main objective of the trade union is to protect the interests of the workers by collective effort and make them Progress has to be made in the first quarter of the twentieth century, the trade union movement started in India, even though the seeds were sown in the last quarter of the 19th century for the emergence of this movement, whose main figures are SS Bengali and NM Lokhande and some Trade unions were established by other persons.

ट्रेड यूनियन मूवमेंट जिसे कि हम मजदूर संघ के नाम से भी जानते हैं मजदूर संघ श्रमिकों द्वारा स्वैच्छिक रूप से कायम की गई संस्थान हैं जो मजदूरों के लिए काम करती है तथा मजदूर संघ का प्रमुख उद्देश्य सामूहिक प्रयास द्वारा श्रमिकों के हितों की रक्षा करना एवं उन्हें उन्नति करना होता है बीसवीं शताब्दी के पहले चतुर्थ भाग में भारत में मजदूर संघ आंदोलन आरंभ हुआ चाहे इस आंदोलन के प्रस्फुटित होने के लिए 19वीं शताब्दी के अंतिम चतुर्थ भाग में बीज बोए जा चुके थे जिसके प्रमुख व्यक्ति एस एस बंगाली तथा एन एम लोखंडे तथा कुछ अन्य व्यक्तियों द्वारा मजदूर संघ स्थापित किए गए थे

The trade unions were successful in going on strike in the initial phase, due to which the condition of the workers has also improved to some extent, but by the end of the First World War, the firm foundation of the trade union could be laid in India and there was some improvement in the condition of the workers.

मजदूर संघ शुरुआती दौर में हड़ताल करने में सफल रहे जिससे मजदूरों की दशा कुछ हद तक उन्नति भी है लेकिन पहले विश्व युद्ध के अंत तक भारत में मजदूर संघ की पक्की नींव डाली जा सकी थी और मजदूरों की हालात में कुछ सुधार भी हुआ था

Contents

Development of trade union movement

After the First World War, the Indian labor class felt the effectiveness of strike measures to improve the condition of workers and to get more wages and other states for them, many strikes were announced in 1921 AD, there were 4000 strikes. In which 600,000 workers participated, most of these strikes have been successful, due to the success, many trade unions were formed. In 1920 AD, the All India Trade Union Congress (AITUC) was established so that the interests of the workers could be protected.

प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात भारतीय श्रम वर्ग ने श्रमिकों की दशा उन्नत करने के लिए तथा उनके लिए अधिक मजदूरी और अन्य रियासतें प्राप्त करने के लिए हड़ताल के उपाय की प्रभाविता को अनुभव किया बहुत ही हड़ताल ओं की घोषणा की गई 1921 ईस्वी में 4000 हड़ताल हुई जिनमें 600000 श्रमिकों ने भाग लिया इनमें से अधिकतर हड़ताल सफल रही है सफलता के कारण बहुत से मजदूर संघ कायम हो गए 1920 ईस्वी में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस एआईटीयूसी की स्थापना हुई ताकि श्रमिकों के हितों की रक्षा कर सके

All India Trade Union Congress ( AITUC )

The All India Trade Union Congress (AITUC) as a whole protected the political and economic interests of the unorganized workers or various industries. With the establishment of the All India Trade Union Congress, there was a wave of formation of trade union in the country, thus this movement in large and small industries and membership of the trade union increased manifold.

देश भर में फैली हुई विभिन्न संस्थाओं की क्रियाओं को समझ कर सके और जिन क्षेत्रों में मजदूर संघ आंदोलन नहीं सका उनमें इसे फैला सके जबकि ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस समग्र रूप से असंगठित श्रमिकों के लिए राजनीतिक एवं आर्थिक हितों की रक्षा करती थी या विभिन्न उद्योगों में श्रमिकों के विभिन्न वर्गों की कठिनाइयों की ओर ध्यान रखें ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना से देश में मजदूर संघ के निर्माण की लहर दौड़ गई इस प्रकार बड़े तथा छोटे उद्योगों में यह आंदोलन और मजदूर संघ की सदस्यता बढ़कर कई गुना हो गई

Trade Union Act 1926

In 1926 AD, the Trade Union Act was passed, which is of historical importance in the trade union movement, this act gave legal approval to the registered trade union, due to which its members have got some protection from the clutches of the law. Due to this, the faith of the workers became high in the eyes of the general public and the owners of factories.

1926 ईस्वी में मजदूर संघ अधिनियम पास हुआ जो कि मजदूर संघ आंदोलन में ऐतिहासिक महत्व रखता है इस अधिनियम ने पंजीकृत मजदूर संघ को कानूनी स्वीकृति प्रदान कर दी जिससे इसके सदस्यों को कुछ हद तक कानून की पकड़ से सुरक्षा प्राप्त हो गई है मजदूर संघ का रजिस्ट्रेशन होने से मजदूरों का आस्थान सामान्य जनता और कारखानों के मालिकों की नजर में ऊंचा हो गया

Ideological Differences Between Labor Leaders

In the late 1920s – 30s, the trade union movement broke out due to ideological differences among the labor leaders. The All India Trade Union Congress was captured by the Communists and the Moderate Party established the new Central Labor Organization in the form of the All India Trade Union Federation. Due to the conflicts among the leaders, the confidence of the workers in them was reduced and till the result many strikes failed. After 1930 AD, such an environment started to be created for the trade union movement which was not conducive to this movement. The severe recession of 1919 AD also had an effect. Unity was established in this movement already.

1920 – 30 के दशक के अंतिम वर्षों में मजदूर नेताओं के बीच सैद्धांतिक मतभेद होने के कारण मजदूर संघ आंदोलन में फूट पड़ गई | ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस पर साम्यवादी ने कब्जा कर लिया और नरम दल ने ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन फेडरेशन के रूप में नए केंद्रीय श्रम संस्था की स्थापना की | नेताओं के आपसी झगड़ों के कारण श्रमिकों का उनमें विश्वास कम हो गया और परिणाम तक कई हड़ताल असफल हो गई | 1930 ईस्वी के पश्चात मजदूर संघ आंदोलन के लिए ऐसा वातावरण बनना आरंभ हो गया जो इस आंदोलन के लिए अनुकूल नहीं था मेरठ कांड में पकड़े गए सामने वादियों और 1929 में मुंबई सूती वस्त्र उद्योग की हड़ताल की और सफलता के कारण मजदूर संघ आंदोलन को धक्का लगा 1919 ईस्वी की घोर मंदी को भी प्रभाव पड़ा इस काल में हड़ताल द्वारा 900 मजदूरों को ही गिरने से रोका जा सका और ना ही श्रमिकों की चटनी से ही बचाया जा सका इस काल में भी मजदूर संघ में फूट पड़ी हुई थी किंतु द्वितीय विश्व युद्ध से पूर्व ही इस आंदोलन में एकता कायम हो गई

Impact of British Imperialism

During the Second World War, a crisis situation was declared and the trade union leaders again started differences on the question of participating in the war, the communists wanted to defeat the Nazis by helping the British government by imitating the Russian Communist Party, while the nationalist leaders of the British Wanted to strengthen the national movement to overthrow imperialism, this again led to an ideological difference and the trade union movement again erupted. Industrial unrest increased due to the increase in the cost of living during the war, the government followed the Indian defense rules. By using strike and lock-bandi as illegal and tried to resolve the industrial dispute by compromise and subordinate decision, but due to the deteriorating economic condition, the workers got awakened to do organized work to improve their condition. The union movement got an impetus and there was also an increase in the number and membership of the trade union.

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान संकटकालीन स्थिति घोषित की गई और युद्ध में भाग लेने के प्रश्न पर मजदूर संघ के नेताओं ने फिर मतभेद शुरू कर दिया रूसी साम्यवादी पार्टी का अनुकरण कर साम्यवादी ब्रिटिश सरकार की सहायता कर नाजियों को पराजित करना चाहते थे जबकि राष्ट्रवादी नेता ब्रिटिश साम्राज्यवाद को उखाड़ फेंकने के लिए राष्ट्रीय आंदोलन को मजबूत बनाना चाहते थे इससे फिर एक सैद्धांतिक मतभेद पैदा हो गया और मजदूर संघ आंदोलन में फिर फूट पड़ गई युद्ध काल में निर्वाह व्यय के बढ़ने के कारण औद्योगिक अशांति में वृद्धि हुई सरकार ने भारतीय प्रतिरक्षा नियमों का प्रयोग कर हड़ताल और ताला बंदियों को गैरकानूनी करार दिया और औद्योगिक झगड़े को समझौते और अधीन निर्णय द्वारा हल करने का प्रयास किया परंतु आर्थिक स्थिति के खराब हो जाने के कारण श्रमिकों में अपनी दशा सुधारने के लिए संगठित कार्य करने की जागृति उत्पन्न हो गई इससे मजदूर संघ आंदोलन को प्रोत्साहन मिला और मजदूर संघ की संख्या और सदस्यता दोनों में भी हुई

Trade union movement after independence

The partition of India also happened with independence, soon after that unemployment increased in India, the workers had hopes that as soon as the national government was formed, they would get out of economic wages and higher wages would be able to show good work and get facilities but this could not happen. The workers realized that they have to struggle to maintain the present wages and other facilities, in which period there was a huge amount of strike in the country, during which there was such a loss of human days that there had never been three central labor in the country. Due to the establishment of institutions, the trade union movement again split during this period, the Indian National Trade Union Congress was started in 1947 AD and it was controlled by the Congress Party. Hindu Mazdoor Sabha was formed in 1948 AD by the Praja Samajwadi Party. United Congress was established in 1949 AD and Congress was established on it in 1947, all these trade unions have been progressing the workers, but the sad thing is that there is no unity in them and they do not do it according to any ideology or principles. u It would be appropriate to mention that the labor movement has spread a lot and their roots are getting stronger, so now it is taking a temporary form. There are some small trade unions.

स्वतंत्रता के साथ भारत का विभाजन भी हुआ इसके तुरंत बाद भारत में बेरोजगारी बढ़ गई श्रमिकों की यह आशाएं थी की राष्ट्रीय सरकार बनते ही वह आर्थिक मजदूरी से बाहर निकल जाएंगे और अधिक मजदूरी काम की अच्छी दर्शाए और सुविधा प्राप्त कर सकेंगे लेकिन ऐसा हो न सका श्रमिकों ने यह अनुभव किया कि उन्हें तो वर्तमान मजदूरी एवं अन्य सुविधाएं को कायम रखने के लिए संघर्ष करना आवश्यक है देश में बड़ी भारी मात्रा में हड़ताल हुई किस काल में मानव दिनों की इतनी हानि हुई कि पहले कभी नहीं हुई थी देश में तीन केंद्रीय श्रम संस्थाओं की स्थापना के कारण इस काल में मजदूर संघ आंदोलन में फिर फूट पड़ गई इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस 1947 ईस्वी में चालू की गई और इस पर कांग्रेस पार्टी का नियंत्रण था प्रजा समाजवादी पार्टी द्वारा 1948 ईस्वी में हिंदू मजदूर सभा बनाई गई आमूल परिवर्तन वादियो ने 1949 ईस्वी में यूनाइटेड कांग्रेस तथा 1947 में चालू की गई इस पर कांग्रेस की स्थापना की गई यह सभी मजदूर संघ श्रमिकों की उन्नति करते रहे हैं किंतु दुख की बात यह है कि इन में एकता नहीं और किसी विचारधारा या सिद्धांतों के अनुकूल नहीं करते यह उल्लेख करना उचित होगा मजदूर आंदोलन काफी फैल गया है और उनकी जड़ें मजबूत होती जा रही है इसलिए अब यह अस्थाई रूप धारण कर रहा है ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि भारत में बहुत से मजदूर संघ हैं इनमें से कुछ बड़े मजदूर संघ हैं तो कुछ छोटे मजदूर संघ हैं

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